कुछ बातें सिर्फ बिन बोले ही की जा सकती हैं. बहुत बहुत बहुत अच्छी कविता .. अवश्य पढ़ें लेखक कुनाल कुशवाह की ये सुन्दर लेखनी ..
-Aaj Sirhaane
मौन
फिर पुरानी याद को लेकर,
आज तुम्हारे समक्ष खड़ा हूँ,
कहना चाहूँ जी भर कर,
कि इश्क़ में तेरे सबल खड़ा हूँ,
लेकिन इन आँखों की,
गहराई में खुद को पाता हूँ,
तुम भी न कुछ बोली जाना,
मैं भी फिर से मौन खड़ा हूँ ।
छत पर गिरती तिरछी बूंदों
और ओलों के बीच खड़ा हूँ.
महकी हवा के झोंकों में तर,
तेरी खुशबू संग खड़ा हूँ,
लेकिन तेरे होठों की लाली में,
खुद को पाता हूँ,
तुम भी न कुछ बोली जाना,
मैं भी फिर से मौन खड़ा हूँ ।
देख के तेरीकातिल जुल्फें
मन्त्र मुग्ध साकार खड़ा हूँ,
मिथ्या , माया, भ्रम है सारा,
तेरी छाया संग खड़ा हूँ,
लेकिन तेरे प्रतिबिम्ब में,
आज भी खुद को पाता हूँ,
तुम भी न कुछ बोली जाना,
मैं भी फिर से मौन खड़ा हूँ ।
रोज़ तो आती हो संध्या में,
रोज़ के जैसे आज खड़ा हूँ,
रोज़ जो तड़पाती है दूरी
तड़पा सा फिर आज खड़ा हूँ,
लेकिन दूरी और बढ़ेगी,
खुद को ये समझाता हूँ,
तुम भी न कुछ बोली जाना,
मैं भी फिर से मौन खड़ा हूँ ।
चार जुलाई की संध्या को,
ज़हन से बांधे आज खड़ा हूँ,
तेरी मौत के उस पल को फिर,
आज सम्भाले अलग खड़ा हूँ,
लेकिन तुझ से अलग में जी कर
खुद को कातिल मैं पाता हूँ,
तुम भी न कुछ बोली जाना,
मैं भी फिर से मौन खड़ा हूँ ।
स्वप्न बुरा आया था उस दिन,
वो पल गूंथे आज खड़ा हूँ
जिम्मेदारी की चौखट पे,
खुद को कोसे आज खड़ा हूँ,
अश्रु की नदिया में बहते,
शव में खुद को पाता हूँ,
तुम भी न कुछ बोली जाना,
मैं भी फिर से मौन खड़ा हूँ ।
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lage rahiye
🙏ji
सुंदर प्रयास लिखते रहें।
कभी कभी रचनात्मक स्वतंत्रता ली जा सकती है लिया कीजिए।