Note From Guest Editor Narpati Chandra Pareek : आज सिरहाने द्वारा मुझे 10 कहानियाँ पढ़ने के लिए दी गई,आग्रह था कि एक दिन में इन्हें पढ़ कर किसी एक को सर्वश्रेष्ठ घोषित करूँ !अधिकांश लघु कहानियाँ उच्च कोटि की प्रतीत हुई ! श्रेष्ठ कहानी के चयन के लिए मैंने कहानी-समालोचना की परंपरागत कसौटी को अपनाने का निश्चय किया और निम्नांकित 6बिंदुओं पर प्रत्येक कहानी के हर बिंदू के लिए 10 अंक निर्धारण किए ! इस प्रकार पूर्णांक 60 अंक हुए !
1. कथावस्तु
2. चरित्र-चित्रण
3. कथोपकथन
4. देशकाल
5. भाषाशैली
6. उद्देश्य
मैं आयोजकों को इस बात के लिए धन्यवाद देना चाहता हूँ कि हिंदी के कहानी लेखन हेतु इन्होंने एक आधुनिक मंच प्रदान किया है ! निम्लिखित सभी कहानियाँ उच्चकोटि की हैं,मैंने अपनी अल्प बुद्धि से इन्हें प्रथम,द्वितीय में विभाजित किया इसके लिए मैं इनके लेखकों से क्षमाप्रार्थी हूँ !
माँ By Siddhant
– सीमा बताओ, तुम क्या बनना चाहती हो ?
– टीचर, मैं अपनी माँ की तरह बनना चाहती हूँ। माँ देश की रक्षा करती है।
– अच्छा? वोह कैसे?
– यूँ तो पापा और भैया आर्मी में है, माँ उनकी सेहत का ख्याल रखती है ताकि वो डटकर दुश्मनों का सामना कर सके और देश की रक्षा कर सकें । कड़ी सर्दी और भरी गर्मी में सरहद पर खड़ा रहने का हौंसला देती है माँ | और माँ ने ही स्नेहा दीदी को भी आर्मी के लिए प्रेरित किया। अगर देखो तो देश की असली रक्षा सैनिको की माएँ ही करती है। है न टीचर ?
– हां, बिलकुल
सलाम By Kush Vaghasiya
उसे शहादत का मतलब भी मालूम नहीं था जब उसकी नन्ही आँखों ने “बाबा” की जलती चिता को देखा था |
हर सुबह माँ उसे बाबा की तस्वीर को हाथ जोड़ना नही बल्कि सलाम करना सिखाती थी | दोगले नेताओ की हरकतों ने उन कुर्बानियों की कीमत कोड़ियो की कर दी थी, पर वो माँ अपनी बेटी को उसके पिता के पदचिन्हों पे चलाती रही |
बेटी को आर्मी यूनिफार्म में तिरंगे को सलाम करते देख माँ की आँखों में वो आँसू आ गए जिसकी तमन्ना उन्हें बरसों से थी…..
“मेजर साहब आपका सपना पूरा हो गया !!!”
एक सवाल By Fayaz Girach ♠♣♥♦ Second Place
स्नेहा अपने शहीद पिता की तरह फ़ौज में भर्ती होकर अपना जीवन देश को समर्पित करने की ज़िद्द लिए बैठी थी । दादा जी ने स्नेहा की भावनाओं को समझते हुए उसे एक गुरु मन्त्र दिया।
स्नेहा ने उस अनमोल-मंत्र पर चलते हुए गाँव के ग़रीब और पिछड़े वर्गों के लिए साक्षरता अभियान शुरू किया ।
उसके बाद हर वर्ष, दादा जी की दूरदर्शिता में सफाई अभियान, मुफ़्त चिकित्सा, पानी और बिजली की भी व्यवस्था हुई। अब हर 26 जनवरी को स्नेहा अपने शहीद पिता का यूनिफार्म पहनकर गाँव में ध्वज वंदन करती है।
स्नेहा ने तो देश-सेवा कर दी .. आपने देश के लिए क्या किया ……?
{उपरोक्त कहानी ने प्राप्तांकों के आधार पर प्रतियोगिता में द्वितीय स्थान प्राप्त किया है! कहानी समसामयिक बिंबों अथवा प्रतीकों का प्रयोग करते हुए लिखी है! देशकाल के साथ उद्देश्य भी स्पष्ट है!}
आपकी बेटी By Varun Mehta @funjabi_gabru
“देश की लिए मर मिटूंगा” आप अपने शब्दों के सच्चे निकले ..
मुझे याद है आपकी वोह आखिरी बात, “सुमी, हमारा बेटा आर्मी ज्वाइन करेगा, और बेटी बहुत बड़ी बैडमिंटन प्लेयर बनेगी, रिटायरमेंट के बाद तुम्हे को वर्ल्ड टूर पे ले जाऊंगा”
आप तो अपनी बेटी को देखने भी नहीं आ सके ..
जानते हो स्नेहा बिलकुल आपकी तरह जिद्दी है, कहती है “माँ, अगर आप मेरे पापा भी हो सकते हो तो मैं आपका बेटा क्यों नहीं बन सकती?”
पता है आज आपकी बेटी बैडमिंटन चैंपियन स्नेहा, लेफ्टिनेंट स्नेहा भी बन गयी, मुबारक हो ..
थप्पड़ की गूंज By Rahul Tomar @rahulshabd
वो ज़िल्लत भरे थप्पड़ की गूंज, और उस थप्पड़ से दिल पर पड़े गहरे निशां स्नेहा को हर बार याद दिलाते की मेहनत जारी रक्खो।
“गद्दार बाप की गद्दार बेटी “
ये पंक्ति हमेशा के लिए अंकित हो गयी थी उसके मस्तिष्क पर।
स्टेज से जब उसका नाम पुकारा गया, ललाट पर गौरव धरकर पूरे जोश ओ खरोश के साथ उसने
सलूट मारा और अपनी बहादुरी के लिए वीरता पुरस्कार ग्रहण करने सर उठाकर खड़ी हुई।
पर सर शर्म से झुका था उस अफसर का जो पुरस्कार देने वहां खड़ा था। वो थप्पड़ की गूंज आज उसे सुनाई दे रही थी।
देश की बेटी By Navneet Mishra @micromishra
याद है पापा.. बचपन में कैसे मैं और पिंटू टॉम-जेरी की तरह लड़ते थे .. १० साल छोटा हो कर भी वो कितना क्रोधी लड़ाका था | ट्रेनिंग पूरी कर जब घर पहुँची तो लड़ाई फिर शुरू!
“अगर अब शैतानी की तो समझ लेना, घर के लॉन से किक मारूँगी तो बाग़ीचे के पेड़ पर झूलता नज़र आएगा” यह बचपन का ग़ुस्सा था। माँ कुछ कहें उसके पहले ही बड़ी मासूमियत से बोल पड़ा “आप मुझे कैसै मारेंगी, पापा कहते थे कि आपको तो दुश्मनों से लड़ना है! अब की बार राखी मैं बांधूंगा आपको .. ”
सारा गुस्सा पल में पिघल गया ..
पापा अब मैं देश की बेटी हूँ, देश का नाम रोशन करूँगी। काश! आप होते उस क्षण; यह सलाम आपके लिए, उस परमवीर शहीद के लिए जो मेरे आदर्श थे।
करवट By Ajay Purohit ♠♣♥♦ First Place
२४ जनवरी २००७ :
स्नेहा के ज़हन में अब भी निखिल के कटु वचन, कर्कश ध्वनि से बज रहे थे । निखिल, जिसे वो अपना सर्वस्व दे बैठी थी।
“प्यार? ओह प्लीज ! तुम स्मॉल टाउन लड़कियों का यही प्रॉब्लम है ! मैं एक सक्सेसफ़ुल मॉडल हूँ .. लोग जानते हैं मुझे, यार”
आत्महत्या के अलावा कोई चारा ना था । सहसा उसे वो इश्तिहार दिखा जिस में एथलीट्स को फ़ौज में भरती होने का आमंत्रण था ।
३१ जनवरी २०१५ :
“राष्ट्र को कैडेट स्नेहा पर गर्व है” .. पब में अकेला बैठा निखिल, आज टीवी पर स्नेहा को ऊँचाइयों को छूते देख और नीचा महसूस कर रहा था |
{उपरोक्त कहानी ने सर्वाधिक अंक अर्जित कर प्रथम स्थान प्राप्त किया है !कहानी लेखन के लिए दिए गए संकेत-चित्र को सामने रख कर लिखी गई इस कहानी में पात्र स्नेहा तथा निखिल का चरित्र चित्रण अत्यल्प शब्दों में कर देने के अलावा प्रवाहमयी भाषा शैली तथा आधुनिक बोलचाल के शब्दों का प्रयोग इसे समसामयिक बनाते हैं !पुरूष प्रधान समाज में स्त्री को मात्र उपभोग की वस्तु समझने की अवधारणा पर चोट करती यह कहानी औरतों को स्वावलंबी बनने की प्रेरणा भी देती है ! देशकाल के प्राक्ट्य हेतु कहानी में तारीखों के प्रयोग के स्थान पर समय को यदि अन्य तरीकों से व्यक्त किया जाता तो और भी सुंदर बन पड़ता !}
इक सपने का सिरा.. By Ankita Chauhan
पथ्रराई नज़रों से देखा था मैंने तुम्हें .. जैसे तुम मेरे जिस्म से जाँ खींच कर ले जा रहे थे| उस तिरंगे की गुनगुनी चादर में लिपटा तुम्हारा धड़कता दिल अब खामोश था। तुम्हारे सुर्ख होंठो पर खिलती रेखा बता रही थी..
अपना सपना जिया था तुमने.. एक सपना जो तब शून्यता में विलीन हो गया था..
लोगों की नज़रों में बेबसी बिखरी थी .. मेरी नज़रों में तुम्हारे जिंदादिल सपने का अधूरा सिरा .. चार साल बीत गए..या मैं ही गुज़र गयी एक सदी की तरह ..
पर वो तुम्हारा सपना…तुम्हारा वजूद जिंदा है..औ’ जिंदा रहेगा.. मेरी वर्दी बनकर..
बिटिया का सैलयूट By Amit Rai
छरहरा शरीर,खूबसूरती और उसपर फबती अफसरी वर्दी … ट्रेनिंग बाद लौटी भी तो कैसे मौके पे…
बचपन बीत गया था जिस बाप की प्यार भरी एक नजर के इंतजार में, आज भी वो उसी रोबीले चेहरे में,बेरूखी से लेटे थे।
वो उसी सख्ती के साथ चल बसे, नियम के पक्के जो थे। पूरी ट्रेनिंग बीत गई पर उनका न एक फोन, न लेटर … खैर जिददी वो भी कहां कम थी, घर छोड़ गई तो सीधे आज लौटी है ,
वाह !क्या जबरदस्त सैलयूट किया, सूना है बेस्ट पैरा कमांडो है, बिलकुल निडर …पर काश के वो जिंदा होते …खुद देखते …
देश की वीर बेटी By Somya Tripathi
स्नेहा की कम उम्र में शादी हो गई। स्नेहा खुद भी आर्मी में थी इसलिए अपने पति मेजर रमेश के काम को समझती थी ।शादी को दो वर्ष ही बीते थे , एक दिन अचानक खबर आई की आतंकवादी हमले में मेजर शहीद हो गये है । स्नेहा का तो संसार ही रुक गया, पर अगले ही पल में उसने अपने को समझाते हुए अपनों को संभाला।
देश की वीर बेटी अपने पति से अंतिम समय पर भी लिपट कर रो न सकी| बस शांत सावधान अवस्था में अपने पति को देखती रही| स्नेहा के इस हिम्मत को देख कर सब ने दोनों वीरों को नमन किया।
Individual marking by Guest Editor is available upon request.
Behtreen… sabhi kahaaniyan jhakjhor dene wali….
सभी कहानियाँ बेहद खुबसूरत :))
अजय जी आपकी कहानी सबसे जुदा है, सिद्धार्थ भाई आपकी कहानी बहुत प्यारी लगी, अंकिता जी आपकी कहानी बेहद संजीदा है, फ़ैयाज़ भाई आपकी कहानी में
एक उम्दा संदेश है 🙂
शुक्रिया नरपति जी आपका मुल्यांकन हमारी लेखनी के विकास में योगदान देगा :))
सभी कहानियों से प्रेरणा मिल रही है और बेहतरीन लिखने के लिए । नरपति जी शुक्रिया आपके मुल्यांकन से मेरे लेखन में और भी कुशलता आयेगी ।