
“अरे रोहन! ठीक से लगा ये तोरण, बिल्कुल पीले फूलों के साथ, दरवाज़े के ऊपर.. पार्था माँ को ऐसे ही पसंद है।
और मीता! कितनी देर लगाएगी रंगोली बनाने में, पार्था माँ आती ही होंगीं।”
सुमित सभी को निर्देश दे रहा था। देता भी क्यों ना… उनकी ‘पार्था माँ’ का जन्मदिन था आज! सब बच्चे मिल कर सरपराइज़ करना चाहते थे अपनी ‘पार्था माँ’ को…!
‘पार्था माँ’, प्यार से यही नाम दिया था बच्चों ने पार्थवी अरोड़ा को।
‘मातृ-छाया’ की माँ…. पार्थवी अरोड़ा।
अनाथालय नहीं था, ‘मातृ-छाया’…. घर था उन बच्चों का जिन को दुनिया ने ठुकरा दिया था…. ज़िंदगी बसती थी वहाँ ‘माँ’ के आँचल तले!
“चलो-चलो , छुप जाओ सभी, पार्था माँ आ रही है”
नन्हीं रिया ने बिगुल बजा दिया था।
पीले फूलों के बार्डर वाली साड़ी पहने, मुस्कुराती, साक्षात ममता की प्रतिमा सी, पार्थवी ने जैसे ही कमरे में पैर रखा, फूलों की वर्षा ने उसका स्वागत किया।कहीं से ‘हैप्पी बर्थ डे टू यू….’ की धुन गूँजी और ढेरों नन्हें हाथों उसकी कमर से लिपट गए।
पार्थवी की आँखें भर आई थीं। कितनी भाग्यशाली थी वह.. इतने प्यारे बच्चों का निश्छल प्रेम उसके हिस्से में था। ‘माँ’ ही तो थी वह इन सभी की। कमरे की इतनी मेहनत से की गई सजावट, बच्चों का उत्साह पार्थवी को भाव-विभोर कर रहा था।
मातृत्व का यह सुख अलौकिक था।
बच्चों संग जन्मदिन मना, हंसी-ठिठोली के जब वो कक्ष में लौटी तो बरबस ही स्मृतियाँ उसे अपनी ओर खींच ले गईं। ४ वर्ष पहले, स्कूल का स्टाफ रूम आँखों के सामने आ गया था….
“पार्थवी मैडम, लीजिए बरफी, मीनाक्षी मैडम ने बिटिया होने की खुशी में भिजवाई है!”
चपरासी सदानन की बात सुन पार्थवी ने बरफी का टुकड़ा उठा तो लिया पर खाने की हिम्मत नहीं थी उसमें। मीनाक्षी के चेहरे की दमक देख पार्थवी के मन में ईर्ष्या एवं दुख का अजीब द्वंद चल रहा था । ईश्वर ने उसे इस लायक क्यों नहीं समझा था कि उसकी झोली भी कायनात की इस नेमत से भर जाती ।मिठास की कड़वाहट महसूस होने लगी थी पार्थवी को, आँखें नम हो आईं थीं,सो चेहरा सामने पड़ी अखबार में गड़ा लिया था।
अचानक अखबार की एक खबर ने पार्थवी को कुछ यूँ अपनी ओर खींचा मानो दिमाग में भूचाल आ गया था। लिखा था,
” क्या आप नि:संतान महिला हैं , क्या आप सरोगेट पिता की तलाश में हैं? यदि हां, तो इस पते पर मिलें!”
सरोगेट पिता… ये क्या होता है? पार्थवी ने IUI, IVF, SURROGATE MOTHER, SPERM DONATION. सब सुना था, मगर ये …. नहीं !
अखबार तो बंद कर दी, लेकिन सोच बंद नहीं हुई। क्या यह रास्ता उसकी सूनी झोली भर सकता था ?
१५ वर्ष हो चले थे शादी को, पार्थवी और रघु संतान सुख से वंचित थे अब तक। पहले हर किसी की तरह पार्थवी को भी इसमें अपनी ही गलती महसूस होती थी। दुनिया भर के परीक्षण भी करवाए, परन्तु कोई नतीजा सामने नही आया था। डाक्टरों के बहुत समझाने पर रघु अपने परीक्षण करवाने को तैयार हुआ था और नतीजे ने गाज गिरा दी थी जिंदगी पर।
‘रघु पिता नहीं बन सकता था.. इमपोटेंट … यही कहा था डाक्टरों ने…’
बहुत कुछ टूट गया था पार्थवी के अंदर। स्पर्म डोनेशन से बच्चा, ऱघु ने साफ इन्कार कर दिया था। दोस्तों, रिश्तेदारों ने बच्चा गोद लेने की सलाह दी थी , पर वह इसके लिए खुद को तैयार नहीं कर पाई थी। वह बच्चा पैदा करने का दर्द और खुशी स्वयं अनुभव करना चाहती थी। अपना बच्चा… चाहिए था उसे…
और आज यह अखबार की खबर, रात सोचते हुए बीती, रघु से कुछ नहीं कहा पार्थवी ने…
अगले दिन दफ्तर से आधे दिन की छुट्टी ले पार्थवी उस पते पर पहुँच गई थी। पते की जगह पर था, एक छोटा सा कमरा, कुछ फाइलें और एक अधेड़ उम्र की औरत!
उस औरत ने पार्थवी का चेहरा पढ़ लिया था शायद, इसीलिए बिना समय गंवाए बोली थी..
“ये रही फाइलें, find a potential man, अपने सही दिनों में आपकी चुनी जगह…. गोपनीय रहेगा सब, उसकी, आपकी पहचान सब कुछ और बाद में भी कोई वास्ता नहीं… हमारी फीस ……”
सुन कर पार्थवी लौट आई।
रात भर खुद से सवाल -जवाब करती रही
” क्या गलत था, अगर स्पर्म डोनेट करवाती तो भी तो यही होता..”
“लेकिन समाज क्या रहेगा, शादीशुदा होकर यह सब, और रघु….”
“पर मुझे मां बनने का हक है, कैसे भी…”
भोर हो चुकी थी, और पार्थवी फैसला ले चुकी थी। ये एक जंग थी उसके लिए, जिसमें सब जायज़ था …. शायद!!!!
तैयार होकर निकल पड़ी थी अपनी सोची मंज़िल की ओर। आटो में बैठे-बैठे दिमाग में विचारों का युद्ध चलता रहा। एक झटके से आटो रूका तो विचारों की तंद्रा टूटी थी। सामने एक मासूम था ओर आटो वाला उस पर बरस रहा था।
पूछने पर पता चला , उस बालक का कोई नहीं था… नाम माता, ना पिता, ना ही कोई रिश्तेदार। उसके मासूम नयनों ने बाँध सा लिया था पार्थवी को। यंत्रवत सी उसने बच्चे को उठाया और आटो वाले को वापस चलने को कह दिया।
वहीं उस पल में…’माँ’ बन गई थी पार्थवी …. और जन्म ले लिया था उसकी कोख से ‘मातृ-छाया’ ने……
“अरे पार्था माँ, देखिए ना, मैंने आपके लिए कार्ड भी बनाया है…”
नन्हीं रिया अपनी माँ को तोहफा देने आई थी। पार्थवी ने उसे भींच की सीने में छुपा लिया था।
लेखिका : प्रीत कमल
संकलन : अग्नि परीक्षा
फुट नोट :
इस रोचक “अग्निपरीक्षा” संकलन की भाँति ही हम अन्य ऐसे कई संकलनों पर कार्यरत हैं । यह एक ऐसा अनोखा प्रयास है जिसमें संघ समीक्षा एवं टिप्पणियों के फलस्वरूप हम कहानियों को अंतिम रूप देकर आपके समक्ष प्रस्तुत करते हैं ।
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-धन्यवाद
आजसिरहाने
aajsirhaane@gmail.com
बहुत खूब सूरत कहानी ।
And it feels even great when the comment is from a master story teller himself 🙂
कहानी का अंत बेहद खूबसूरत है.. इससे कई लोगों को प्रेरणा मिलेगी
Hopefully dear.. that is the motive behind !!!
कहानी नहीं संदेश है, सब तक पहुँचना चाहिये, बेहद खूबसूरत… एक लय में पढी जाने वाली, रोचक और रमणीय
Thanks jii.. you yourself are a wonderful story teller 🙂
एक खुबसूरत विचार जिसे दिल छू लेने वाली कहानी में ढाला गया…
आला !!
Many thanks .. Aapko achii lagi.. bahut Aabhar !