मोटा चश्मा उतार कर रख दिया वैदेही ने घर में आकर , अभी पर्स रखा ही था कि माँ की आवाज़ आई , “जल्दी कर वैदेही , मुँह हाथ धो ले , लड़के वाले आते ही होंगे । “
क्या माँ , फिर से , वैदेही परेशान हो उठी , ये रोज-रोज का तमाशा क्या लगा रखा है घरवालों ने । पर ये भी क्या करें , मैं जो शिला की तरह इनकी छाती पर जमी बैठी हूँ , सोचते हुए गहरी साँस लेकर वैदेही उठ गई । फिर शुरू हुआ वही तमाशा , चाय , नाश्ता , सेलरी की इन्क्वायरी , किसी सहकर्मी से अफेयर तो नहीं है , जैसे बेहूदा सवाल ।
सब का स्थिर भाव से जवाब दिया वैदेही ने , क्या करे अभ्यस्त हो चुकी थी , पिछले दस वर्षों का अनवरत क्रम चला आ रहा था । न कुंडली में विवाह योग जाग पाता था न वैदेही को मुक्ति मिल पाती थी इस त्रासदी से ।
आज जैसी बुझी – बुझी नहीं थी वैदेही वरन् वो तो बहुत ही नटखट , चंचल लड़की थी और पढ़ाई में बेहद होशियार । सदा क्लास में टॉप करना जैसे आदत थी उसकी | एक-एक करके पढ़ाई के ऊंचे सोपानों पर पहुँचती गई , अव्वल रहने का नशा था जैसे उसे । एम० ए० साहित्य में गोल्ड मैडल लिया तो फूले नहीं समाए उसके माता पिता पर तभी जवान बेटी की बढ़ती उम्र ने लोगों को उकसा दिया ।
“शादी कब कर रहे हो इसकी , नाते रिश्तेदारों ने वक्र दृष्टि के साथ पूछा तो माता-पिता ने भी रिश्ते के लिए खोजबीन शुरु की ।
सुंदर , सभ्य और सुसंस्कृत वैदेही के लिए रिश्तों की कमी न थी पर वो जिद पर अड़ी थी कि पहले आत्मनिर्भर बनना है तभी शादी के बारे में सोचेगी आखिर गोल्ड मैडलिस्ट जो ठहरी यूनिवर्सिटी की ।
तभी कॉलिज की कमेटी ने कॉलिज में ही लेक्चरार की पोस्ट ऑफर की तो वैदेही खुशी से पुलकित हो गई । नियुक्ति पत्र लेकर घर पहुँची तो माँ खुश तो हुई पर माथे की चिंता की लकीरों ने पूछ ही लिया , कब होगी इसकी शादी ? मनोव्यथा उभर आई थी चेहरे पर उनके । दो बहनें और भी हैं छोटी , वो भी सयानी होती जा रही है..
कलफ लगी साड़ी , हाथ में पर्स और चेहरे पर रोबदार चश्मा लगाकर जब वैदेही कॉलिज जाती तो मोहल्ले वाले उत्सुकता और खुसर – पुसर करते हुए देखते I वक्त बीतता गया , देखते-देखते दस वर्ष बीत गए , वैदेही बत्तीस वर्ष की होने आई , दोनों बहनें भी ताड़ सी लंबी निकल आई थीं , उनका कॉलिज भी पूरा हो गया था ।
पर शादी का मसला था कि हल नहीं हो पा रहा था आखिर छोटी बहन निकिता ने खुद ही बोल्ड कदम उठाकर सहपाठी निखिल से शादी कर ली जब वो लव मैरिज कर अचानक आशीर्वाद लेने घर आ गई तो माँ तो जैसे काठ की हो गई और बाबूजी तो नम आँखें लिए बैठे रह गए । पूरा मोहल्ला तमाशबीनों की तरह झाँक रहा था उनके घर में. । सच , दीवारों की भी आँखें होती हैं ।
“क्या करूँ मैं ? निकिता ने बेशर्मी से निखिल का हाथ पकड़ कर कहा , “दीदी तो घर से हिलती नहीं , यहीं धूनी रमाए बैठी है , मैंने तो कर ली अपनी शादी खुद ।
वैदेही तो जैसे बर्फ सी सुन्न ठंडी हो गई ।
ये निकिता है जो प्यार से कभी सूट की फरमाईश करती थी कभी चोकोबार आईसक्रीम की , जो अपनी दीदी से पूछे बिना एक कदम भी नहीं रखती थी बाहर ।
सच , समय के साथ-साथ रिश्तों के मायने भी बदल जाते हैं Iकुछ भी चिर स्थायी नहीं इस परिवर्तनशील संसार में । तिनका – तिनका कर हम एक नीड़ का निर्माण करते हैं और न जाने कहाँ से एक आँधी वेग पूर्वक आती है जो सब कुछ उड़ा ले जाती है ।
ऐसा नहीं कि वैदेही शादी करना नहीं चाहती थी पर कहीं बात नौकरी छोड़ने की शर्त पर अटक जाती तो कहीं उसकी सेलरी को हड़पने की इच्छाओं पर । कहीं लड़के वाले अपने पैसे का रौब दिखा कर उसे अपने महल की शोकेस गुड़िया बनाना चाहते तो कहीं उसकी नौकरी के ज़रिए अपनी ईएमआई चुकाने की उम्मीदें रखते । सच एक विभीषिका में फँस गई थी वो
अब नाते रिश्तेदारों को एक और चटपटा मसाला मिल गया , निकिता की लव मैरिज ।
गाहेबगाहे सब निकिता के भाग जाने का कारण परोक्ष और अपरोक्ष रूप से वैदेही को ही ठहराते और बेचारी वैदेही मौन रहकर सारा समय ऐसे अभियोग को झेलती जो उसने किया ही नहीं। एक तानाशाही अदालत है ये समाज जो स्वयं ही अपराध तय करता है , खुद ही गवाही देता है और बिना सफाई लिए खुद ही अपराधी को सज़ा भी सुना देता है । कोई अपील नहीं चलती इसके विरुद्ध , बस मूक दर्शक बनकर देखो और झेलो |
फिर एक दिन अचानक एक दूर के रिश्ते की बुआ प्रकट हुई वैदेही की तारणहार के रूप में ।
रिश्ता लाईं थी वो सात्विक का वैदेही के लिए । सभ्य , उच्च मध्यमवर्गीय परिवार का एकमात्र कुलदीपक सात्विक ,आई० आई०टी० से शिक्षित और एक एमएनसी में. उच्च पद पर कार्यरत । मोटा पैकेज , कंपनी से मिला बंगला सब कुछ था इस रिश्ते में ।
बस , सात्विक को साहित्य का बड़ा क्रेज है भई ,. इसीलिए तैयार हुआ है वैदेही को देखने के लिए , वरना लड़कियों को कमी नहीं हमारे बेटे को , दंभ से भरकर.कहा सात्विक की माताजी ने । एक बार तो तड़प उठी वैदेही फिर माँ की कातर आँखें देख चुप हो गई ।
पहली नज़र में सात्विक अच्छे लगे वैदेही को । कुछ औपचारिक सी बातों के बाद लगन मुहूर्त तय हो गया । एक गहरी साँस ली माता पिता ने , चलो कन्यादान करें और उऋण हो जाएँ।
सच ,बेटियाँ आधुनिक समाज में भी बोझ ही मानी जाती हैं जिनसे जल्दी से जल्दी छुटकारा पा लेना चाहते हैं सब । शादी की तैयारियाँ होने लगी , कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहते थे माँ – बाबूजी । वैदेही मना करती रहती पर माँ अपने जेवरात तुड़वा कर वैदेही के नए ढंग के जेवर बनवाने लगी । बाबूजी भी शहर का सबसे अच्छा. बैकेंट हाल बुक करवा आए थे ।
पर शादी के ठीक दो दिन पहले . सात्विक के घर से फोन आया , एक अदद होंडा सिटी कार का प्रबंध करिए । . भौचक्की रह गई वैदेही , ऐसा तो कुछ नहीं कहा था पहले इन लोगों ने ।
आवेश में वैदेही ने खुद फोन किया सात्विक को पर वो तो माँ के पल्लू से बँधा पप्पू निकला । “देखो वैदेही , दहेज को मैं भी ठीक नहीं मानता पर. हमें भी समाज में इज़्जत दिखानी है फिर तुम्हारा परिवार भी दागी है । “
“मतलब. ? दागी कैसे ?”
बिफर गई वैदेही
“अब देखो ना तुम्हारी बहन ने. घर से भागकर शादी की है, लोग तुम लोगों के बारे में अंट शंट बोलते हैं. , फिर भी हम लोग तैयार हुए इस रिश्ते के लिए , ये क्या कम है ”
पत्थर बन गई वैदेही , बस अब और नहीं । एकाएक एक बड़ा निर्णय लिया वैदेही ने , वो . जीवन पर्यंत अविवाहित रहेगी ।
स्त्री शक्ति नामक एन०जी० ओ० से जुड़कर निराश्रित महिलाओं की सहायता करेगी ।
कोटिशः . सूर्य की प्रभा से. दैदीप्यमान हो रहा था. वैदेही का मुखमंडल आज वो अबला नहीं रही स्वयं संबल बन गई है, अब. कैसा डर ?
लेखिका : अर्चना अग्रवाल
संकलन : अग्नि परीक्षा
फुट नोट :
इस रोचक “अग्निपरीक्षा” संकलन की भाँति ही हम अन्य ऐसे कई संकलनों पर कार्यरत हैं । यह एक ऐसा अनोखा प्रयास है जिसमें संघ समीक्षा एवं टिप्पणियों के फलस्वरूप हम कहानियों को अंतिम रूप देकर आपके समक्ष प्रस्तुत करते हैं ।
यदि आप भी इस ‘विशेष’ कहानी लेखन कार्य मे भाग लेना चाहते हैं तो हम से ईमेल के द्वारा संपर्क करें ।
-धन्यवाद
आजसिरहाने
aajsirhaane@gmail.com
waah!! Archana samaj ko sach ka aaina dikhati hai ye kahani, aaj bhi ladkiyon ko paraya dhan ya bojh kah kar sambodhit kiya jata hai. Kaash wo din jald aaye jab is shraap se mukti mile sabhi ko!!
जी सही कहा आपने , अब ये सूरत बदलनी चाहिए , धन्यवाद
Bahut khoob
Thank you 🌹
Bahut hi behtreen kahani archana ji.
शुक्रिया जागृति
आप तो हमारी लेडी प्रेमचंद हैं.. किसी भी भाव को अलंकृत कैसे किया जाता है आपसे बेहतर कौन जान सकता है.. अब आपकी कहानियों की पुस्तक का इंतज़ार है
अनु मैम आप तो सच में जौहरी हैं.. हीरे की पहचान करना खूब जानती हैं आप
आप दोनों को मेरा नमन
शुक्रिया पाकीज़ा , मैं अभिभूत हूँ लेडी प्रेमचंद के खिताब से
Wah Archanaji aapne hamare samaj ka stree ke prati jo took hota hai uska yatharth Chilean kar diya. Hamare samaj stree ke saath hamesha anyay karta hai . Swayam Raamji Sitaji ke saath nyay nahi kar sake the samaj ke karan .
शुक्रिया सही कहा आपने
कहानी में पात्र की मनोस्थिति का विवरण कैसे होता है वो इस कहानी में सीखने को मिलता है, अभिनन्दन 🙂
आपको अच्छी लगी कहानी , परिश्रम सार्थक हुआ
बहोत खुब डियर अर्चना, समस्या का बहोत अच्छे से निरुपण किया है साथ ही ज़बरदस्त समाधान भी दर्शाया है।
आपकी लेखनी सशक्त है पढ़ना अच्छा लगता है ।
शुक्रिया बीना जी ,लेखनी सफल हो जाती है आप सबकी प्रशंसा पाकर