अपने सौतेले भाई अरतु की चिकनी चुपड़ी बातें राम प्यारी को आज भी याद हैं |
“अरे शहर इत्ता बड़ा होता है और लोग कांच की मूर्तियों जैसे साफ़ सुन्दर और चीनी से भी मीठे .. तू चल के देख तो सही, न ठीक लगे तो वापिस आ जइयो.. तेरा भाई हूँ .. तेरा बुरा न कहूँगा |”
बस भाई की बातों और छुक छुक गाडी की मीठी आवाज़ में १३ साल की रामप्यारी आ ही गयी और छोटी बहन उर्मि के साथ दिल्ली पहुँच गयी । अरतु ने उसे घरों में काम दिलाने का वादा कर के एक मैडम के घर उन दोनों को छोड़ा कर कहा था कि मैं बस ५ दिन में लौट आऊंगा ..घर ढूंढ लूँ .. फिर साथ रहेंगे तीनो भाई बहन ..
२ महीने तक तो राम प्यारी रोज़ अरतु की राह देखती रही और मैडम के घर के सारे काम करती रही .. फिर उसको समझ आ गयी की अरतु का फ़ोन क्यूँ बंद हो चुका है|
राम प्यारी को वो मैडम अच्छी नहीं लगती थी खासकर वो जब अपने घर अलग अलग मर्दों के साथ बैठ कर दारु पीती और रामप्यारी को चमकीला चनिया चोली पहना कर वहीँ बिठा देती| चुन्नी क्यूँ उतरवा देती थी, रामप्यारी को अब समझ आने लगा था । राम प्यारी के पास कोई और चारा भी न था| पर एक दिन जब मैडम ने उर्मि को खींच के थप्पड़ रसीद दिया तो उसी रात वो रोती हुई उर्मि को ले कर भाग आई|
यहाँ ब्रिज के नीचे और भी बच्चे थे .. सब दिन भर कबाड़ी दुकानों के लिए काम करते और शाम को खेल कूद के अपनी अपनी ईंट पर सर रख के सो जाते .. खाना मिलता तो हंस के सो जाते और कभी यूँही मुस्कुराकर नींद में रोटी की बातें कर लेते ..
राम प्यारी को टी.के. कबाड़ एंड संस वाले ने वाले टिक्कू जी ने अपनी बीवी के कहने पर काम पर तो रख लिया लेकिन उसे सख्त हिदायत दी उसे अपने बाल कटवा के लड़कों की तरह रहना होगा .. पर जिस तरह से उसने रामप्यारी के सीने को घूर कर नज़र हटाई थी, वो समझ गयी थी की उनका असली इशारा उसके सीने के नाज़ुक उभार से था| टी.के. कबाड़ एंड संस वाले ने वाले टिक्कू जी भले आदमी थे जो नज़रें हटा लेते थ| रामप्यारी तो उनको शरीफ समझती ही थी लेकिन शायद टिक्कू जी खुद को शराफत का खुदा समझते थे ..
सुबह सुबह ही राम प्यारी सीने पर चुन्नी बाँध कर और उप्पर से खुला कुरता और सलवार पहन कर उर्मि का मुंह धुला कर काम पर निकल जाती| शाम चार बजे तक उसने अगर १०० रूपए का प्लास्टिक नहीं बीना तो न तो उसे खाना मिलता और न ही उर्मि के लिए|
घरों के पीछे गलियों में कूड़ा बीनने में ज्यादा फायदा था .. यहाँ न तो मेन सड़क जैसा शोर न ही और बच्चों से कोई खिट पिट .. वो पूरी सुबह आराम से डंडी ले कर.. अपने गाँव के गीत गाती हुई कूडा बीनत, कभी उर्मि को डांटती डपटती तो कभी गोद में ले कर चलती| गली के कुत्तों को कूड़े से मिली खाने की चीज़ें खिला देती तो कुत्ते भी भोंकना बंद कर के उसके पीछे हो लेते ..
मगर आज की सुबह कुछ अलग ही बात थी .. कूड़ा बीनते बीनते राम प्यारी के हाथ कुछ नोट लगे .. पहले तो राम प्यारी बहुत खुश हुई कि, अरे वाह १०- १० के पांच नोट.. मतलब पांच दिन का मुफ्त खाना .. मगर उसने ध्यान से देखा की एक के आगे एक नहीं .. दो नहीं .. ये तो तीन गोल थे .. हाय रे दैय्या हज़ार रुपये के पांच नोट थे .. रामप्यारी ध्यान से देखा कि कहीं प्लास्टिक तो नहीं .. इत्ते बड़े बड़े नोट पहली बार देखे थे| पिछली गली से अचानक से एम्बुलेंस का साईरन की आवाज़ आई तो उसने हडबडा कर पैसे नीचे फैंक दिए .. उसने पीछे मुड़ कर देखा .. गली में उर्मि और कुत्तों के अलावा कोई न था .. रामप्यारी ने वापिस वो नोट उठा कर आगे पीछे से अच्छे से जांचे और फिर प्लास्टिक की पन्नी में बाँध कर सलवार के नाड़े में ठूंस लिए .. और वापिस यूँ कूड़ा बीनने लगी की खुद को भी न पता लगे कि खजाना हाथ लग गया है|
शाम को कबाड़ वाले की दुकान तक का रास्ता भी उसे आराम आराम से चल के पूरा किया ताकि कहीं वो प्लास्टिक की पन्नी नाड़े में से सरक न जाए .. लेट पहुँचने पर डांट पड़ी मगर भाड़ में गया टिक्कू कबाड़ी.. २० रूपए देने के लिए गिनते गिनते ऊपर से नीचे घूर घूर कर देखता है हरामी .. अगर उसको बीवी को बता दूँ की कंजर पैसे हाथ में रखने के बहाने उसकी बांह मसलता है और अकेले में निचली पीठ खुरचवाता है तो साला टिक्कू खुद ही प्लास्टिक बोतल जैसा धुना जाएगा ..
पर अब उसे क्या .. अब उसके पास पूरे पांच हज़ार रूपए हैं .. अब तो कमीने टिक्कू कबाड़ी के सामने पड़ने की ज़रूरत ही नहीं .. उसे तो बस अब अपने सपने पूरे करने हैं ..
रामप्यारी को अचानक ही यह शहर अच्छा लगने लगा था .. अरतु सच कहता था.. पहले मुश्किल लगता है मगर सपने पूरे होते है यहाँ| उसने ब्रिज के ऊपर लगे बोर्ड पे लगे उस नेता का फोटो रुक कर देखा और मन ही मन उसे वोट भी कर दिया .. एक मटमैले से ट्रक के पीछे लिखा था बेटी बचाओ बेटी पढाओ .. उसने दृढ निश्चय कर लिया कि वो उर्मि को खूब पढ़ाएगी और एक अफसर बनाएगी .. बिजली के खम्बे पर ‘रईस’ और ‘काबिल’ के पोस्टर देख कर वो उत्साह से भर गयी.. अब वो सब को दिखा देगी की वो कितनी काबिल है और क्या पता कल उसकी गिनती शहर के रईसों में हो .. अपने टेढ़े मेढे और गुड के डेले हवाई किलों पर रामप्यारी को खुद हंसी आ गयी .. पर उम्मीद की किरणों ने राम प्यारी के मन में डेरा जमा ही लिया था ..
शाम को उसने उर्मि को आइसक्रीम खिलाई और उसे अपनी गोद में चिपटाकर कई देर तक बेठी रही .. रात को अपनी ईंट पर लेट कर उसने सूची बनायीं कि क्या क्या करना है| सबसे पहले वो उर्मि के लिए दो फ्रॉक और नयी चड्डी खरीदेगी, अपने लिए भी कपडे और साबुन टूथपेस्ट खरीदेगी .. कुछ साफ़ सुथरी लगेगी तो पास के घरों में सफाई का काम मिल सकता है .. काम मिल गया तो वो अपने माँ बाप को चिठ्ठी लिखेगी की अब चिंता की ज़रूरत नहीं , आपकी बेटी आपको हर महीने पैसे भेजेगी| अपनी माँ बाप को सोच कर उसकी आँखों में आंसू आ गए .. और उसे अपनी माँ की लोरी याद आ गयी ..
गुड़िया मेरी सोई है,
वह सपनों में खोई है।
जब जागेगी मेरी गुड़िया,
तब गाएगी मेरी गुड़िया।
वो उठ के बैठ गयी .. और पैसों वाली पन्नी से पाँचों नोट बाहर निकाले .. अँधेरे में कुछ दिखा नहीं लेकिन नोटों का कोने का करारापन महसूस करने लगी .. उसके बाबा पर जितने पैसों का क़र्ज़ था वो इनसे पूरा नहीं होगा .. ये इत्ते सारे पैसे हो कर भी ये कितने कम थे ..
वो सोचने लगी कि शायद कोई ये पैसे ढूँढ रहा होगा और उसको भी उस पैसे की कितनी ज़रूरत होगी .. शायद इससे उसके बच्चे की स्कूल के फीस जाती हो .. या फिर ये पैसे किसी के इलाज के लिए हों .. उसे अचानक याद आया कि उस गली में एम्बुलेंस का साईरन भी तो सुना था उसने.. ये सोच के वो सिहर उठी .. और रुपयों को अपने कलेजे से लगा कर सोने की कोशिश करती रही ..
पर जिनके पास पैसा होता है उनके पास अक्सर नींद नहीं होती .. आज रात राम प्यारी को अपनी ईंट ज्यादा चुभ रही थी .. उसे लगा कि उसे पैसा वापिस करना ही होगा नहीं तो जाने कहीं देर न हो जाए .. सुबह उठ कर जिस घर के पीछे से उठाये था वही जा कर पता करेगी .. हो सकता है घर के मालिक को उस पर तरस आ जाए और उसे इस में ये सारे रूपए उसे इनाम के तौर पर ही दे दें ..
अगले दिन राम प्यारी किसी तरह ढूंढ कर उस घर के गेट तक पहुंची और उर्मि को पास के पत्थर पे बिठा कर उसने बाहर से घंटी बजायी .. घर के नौकर ने दरवाज़ा खोला तो उसने बडबडाते हुए पूरी कहानी कह दी और पैसे उस को दे दिए .. नौकर ने पहले गौर से पैसों को देखा फिर राम प्यारी को ऊपर से नीचे तक घूरा .. फिर वो अन्दर से मालकिन को बुला लाया .. राम प्यारी हकलाते हुए फिर से कहानी कहने लगी तो मालकिन जोर से हंस दी .. देख कर नौकर भी मुस्कुराने लगा ..
“अरे ये तो नोट तो पुराने हो गए .. ये किसी काम के नहीं ” घर की मालकिन बोली और फिर हंस दी ..
रामप्यारी सोचने लगी .. ये लोग गरीब समझ के बेवक़ूफ़ बना रहे हैं? भला नोट भी कभी पुराने होते हैं?
“पढ़ा नहीं तूने? डिमोंनीटाईज़ेशन? सरकार ने पुराने नोट बंद कर के नए नोट निकाले हैं. ये देख ये नए नोट .. ”
घर की मालकिन ने अपने पर्स में से नया नोट निकाल के दिखाया ..
राम प्यारी नए पुराने नोटों को देखती रही और चुप रही, फिर वापिस मुड़ के गेट से बाहर निकल गयी ..
वो उर्मि को उठा कर जाने ही लगी थी की मालकिन बाहर आई और बोली “सुन .. अन्दर आ .. दाल चावल खा ले .. ये बहन है तेरी? इसे भी ले आ .. ”
रामप्यारी सोचने लगी कि उसे ये दाल चावल खा ही लेने चाहिए .. रात का खाना तो इन नकली पैसों के चक्कर में चला गया .. कल सुबह वापिस उसे टी.के. कबाड़ एंड संस के टिक्कू जी के पास माफ़ी मांगने जाना पड़ेगा .. और फिर बहुत देर तक राम प्यारी को अपनी बाहों में झरझरी सी महसूस होती रही ..
लेखिका : अनुराधा शर्मा
संकलन : अग्नि परीक्षा
फुट नोट :
इस रोचक “अग्नि परीक्षा” संकलन की भाँति ही हम अन्य ऐसे कई संकलनों पर कार्यरत हैं । यह एक ऐसा अनोखा प्रयास है जिसमें संघ समीक्षा एवं टिप्पणियों के फलस्वरूप हम कहानियों को अंतिम रूप देकर आपके समक्ष प्रस्तुत करते हैं । यदि आप भी इस ‘विशेष’ कहानी लेखन कार्य मे भाग लेना चाहते हैं तो हम से ईमेल के द्वारा संपर्क करें ।
-धन्यवाद
आजसिरहाने
aajsirhaane@gmail.com
शहरों की दोगली मानसिकता और गरीबी का द्वंद्व , सटीक चित्रण
Wakai paisa bahut badi cheez hai!! Ye baat kisi ko bachpan mein hi samajh aa jati hai… Kahani ne hila diya!!
वास्तविकता के करीब अच्छी कहानी।
कहानी में लिखे गए मोड़ लाजवाब हैं और डायलाग बड़े मज़ेदार। u are a superb writer