स्वलेख : जून 26, 2017
मार्गदर्शक : कोशिश ग़ज़ल
विषय : गुनाह
चयनित रचनाएं
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Preet Kamal @BeyondLove_Iam
रोज़ सूरज का निगल जाना अँधेरे को
नारंगी शाम का लपेट लेना सवेरे को
नदियों का पर्वतों के गर्भ से निडर निकल आना
और फिर अथाह समुद्र में बेधड़क मिल जाना
फूलों का हर मौसम मुस्कुराना
कलियों का ओस के घूंघट में शर्माना
छोड़ पहाड़ों की गोद बादलों का
प्यासी फसलों पर बरस जाना
हवाओं का दूर देश से आकर
राहतों का संदेशा लाना
प्रीत में पिया का रब हो जाना
एक उसके नैनों में ही सब हो जाना
नभ के चन्द्र के सामने प्रेयसी को निहारते जाना
भोर की रश्मि के होते उसका रूप सराहते जाना
नन्ही मासूम मुस्कान पर सब कुछ वार जाना
नकार ब्रह्मांड की खुशियां,
माँ के आंचल, पिता की गोद में छुप जाना
क्या ज़रूरी नहीं..
यह मासूम से गुनाह होते रहें
और यह दुनिया यूँ ही बसी रहे !!
2
@beyondwhelm
बिन किए हर गुनाह पर पछता रही हूँ मैं
ये किन मरहलों से गुज़रती जा रही हूँ मैं
दहकते हैं दयार-ओ-दर नज़र की हदों तक
चटक रहा है गला और गा रही हूँ मैं
बिखर गया सदियों का जोड़ा सरमाया
बेख़बर शहर है, सोग़ मना रही हूँ मैं
घिरते आते हैं घनघोर अँधेरे हर सू
बुझते उम्मीद के दीपक जला रही हूँ मैं
लिख के जंगों के ख़ूनी हाशिए पे ग़ज़ल
गुंचे सहराओं में गोया खिला रही हूँ मैं
3
Supriya @sipsacredheart
चलेंगे हम भी चलेगी अब ये राह जहां तक
दिल में दबी रहेगी दिल की आह जहां तक
वो बुत भी फ़रेबी उसकी नीयत भी है धोखा
सुनता है वो भी कहते हैं लिल्लाह जहां तक
जुगनुओं में मिलूँगी मैं कभी तारों में मिलूँगी
तेरे ही साथ रहूँगी, है रात सियाह जहां तक
खारिज़ है तेरी अर्ज़ी तेरा सर भी कलम है
गुनहगार ही रहेगा है तू बे-गुनाह जहां तक
महफ़िल से उठ जायेंगे इक रोज़ ‘पाकीज़ा’
बैठे हैं हम भी तहसीन में है वाह जहां तक.
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@FatimaKolyari
ये इश्क़ है, जहाँ हर तमन्ना गुनाह हुआ करती है
नज़्म दिल-ए-शायर में बसे दर्द बयाँ करती है
साँसो की रवानी है कि ज़िंदा है अभी तक हम
वर्ना सीने मे तो हर साँस चुभा करती है
भले ही कोई ताजमहल तामीर न करवा सके,
मुमताज़-ए-इश्क़ तो हर दिल में बसा करती है
हर शमा से कहता है जलता हुआ परवाना
मुझको तो जल जाने मे ही राहत हुआ करती है
दिल चाक़ लिये फिरते है हम बेरहम ज़माने मे
कुदरत भी ना जाने कैसी तक़दीर लिखा करती है.