फ़िल्म: नयनताराज़ नेक्लस
लेखक: अपर्णा चतुर्वेदी, अंकुर खन्ना, जयदीप सरकार
निर्देशक: जयदीप सरकार
मुख्य कलाकार: कोंकोना सेन शर्मा (नयनतारा); तिल्लोतमा शोम (अलका); गुलशन देवैयाह (गिरीश)
भारत में मध्यमवर्गीय जीवन का अपना ही रूप होता है – उच्च-वर्गीय अभिलाषाएँ किंतु ग़रीबी रेखा से नीचे उतरने का चिरस्थायी भय। जयदीप सरकार की “नयनताराज़ नेक्लस” मध्यम वर्ग की इसी दुविधा को दर्शाती है।
मध्यम या उच्च-मध्यम वर्ग में जहाँ काम और पैसे कमाने का बोझ पुरुषों को कई रोज़मर्रा के रमणीय लम्हों से दूर कर देता है, वहीं औरतों पर घर-गृहस्थी के पुनरावृत्तीय कार्यों की नीरसता छाने लगती है। फ़िल्म में जैसे गिरीश को साधारण जीवन के सुखों का इंतज़ार है, वैसे ही अलका को विशिष्ट वर्गीय ख़ुशियों का – जैसे विदेश में पर्यटन, या नई होटलों के अनुभव।
एसे में नयनतारा का किरदार प्रतीक है इन सभी सपनों और चाहतों का, जो एक मध्यम वर्गीय इंसान उच्च वर्गीय जीवनचर्या से जोड़ता है। यह नयनतारा की विडंबना है कि वह भी इन्हीं चकाचौंध भरे किंतु झूठे सपनों को जीने का ढोंग कर रही है। कोंकोना ने नयनतारा के कई जज़्बात बख़ूबी दर्शाए है- जैसे अमीरी के दिखावे से अत्यधिक लगाव, तथा ढोंग के टूट जाने के साथ अपने उच्च वर्गीय सपनों के भी टूट जाने का भय।
अंत में विशिष्ट वर्गीय जीवन से जुड़ी सारी बातें खोखली रह जातीं हैं, क्योंकि जो किरदार उस जीवन का आनंद उठाते नज़र आते हैं, वे स्वयं ही उस ज़िंदगी को बनाए रखने के बोझ तले दब भी जाते हैं – जैसे नयनतारा और गिरीश। अत: अलका ऐसे जीवन के आख़िरी प्रतीक – ‘नयनताराज़ नेक्लस’ को उसी की गाड़ी में छोड़, चली जाती है।
फ़िल्म में पार्श्व संगीत किरदारों की मन: स्थिति को प्रभावी रूप से दिगदर्शित करता है, एवं वस्तुओं के संग्रथित चित्र (मॉन्टाज़) किरदारों के वर्ग एवं जीवनचर्या पर रोशनी डालते हैं।
आपके इस फ़िल्म के प्रति क्या विचार हैं?
– अनामिका पुरोहित
#आजसिरहाने के लिए
सशक्त लेखनी
सजीव चित्रण!! 👌👌
ये शार्ट फ़िल्म तो नही देखी अभी मगर आपकी समीक्षा काबिले तारीफ़ है 👌👌👌